हे ! मानव
तेरी दृष्टि में न समा पाए
इतना सौंदर्य है इस धरा पर
नदियों की कल - कल
फूलों की खुशबू
स्वछन्द होकर जहाँ उड़ते है पंछी
असीम गगन में
हवा बेरोक मेरे आँचल में लहराती है
बादल एक देश से बनकर
दूसरे देश में बरसते है
हे ! मानव फिर क्यूँ
अकेले तुने ही सीमाओं में मुझे बाँध डाला है ?
बंदूकों के साये में
जी रहे है इस पार - उस पार
पर ! क्या बारूद से बंजर हुई जमी पर
कोई बीज अंकुरित हो सकता है ?
नहीं - नहीं - नहीं
इस सच को जानकार भी तू अनजान है
मत खेल उन खिलौनों से जो
तेरे वजूद को ही मिटा दे,
मुझे मेरे होने के एहसास से जुदा कर दे
कर कुछ ऐसा जो तेरे होने पर मुझे गर्व हो
चाहत है बस यही कि धरा पर
शांति ही शांति हो
शांति ही शांति हो
(पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के भारत आने पर लिखी गई कविता )
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