AAROH
Tuesday 1 October 2013
Saturday 7 April 2012
तेरे मेरे बीच में
तेरे ख़यालों में खोया रहा उम्र भर
तुझे जब ख्याल मेरा आया तब मैं न था..
हल्की बौछारों और आँधी के साथ जब सावन भादों आये
मैंने कहा कोई मुझे भी तो खोज ले
बारिश में भी आंसुओं से चेहरा धोता रहा मैं...
आंसू जब सूखे तब मैं न था..
तेरे ख़यालों में खोया रहा उम्र भर
तुझे जब ख्याल मेरा आया तब मैं न था..
ठिठुरती हुई सर्द आई..
तेरे हिस्से की बर्फ भी मुझे दे गयी..
बर्फ की तरह पिघलता रहा मैं
धूप जब आई तब मैं न था..
तेरे ख़यालों में खोया रहा उम्र भर
तुझे जब ख्याल मेरा आया तब मैं न था..
हँसता हुआ जब वसंत आया
मेरे सूनेपन की देहलीज़ पर फूल डाल गया
मैं उन फूलों में तुझे खोजता रहा
जब तू मिला तब मैं न था
तेरे ख़यालों में खोया रहा उम्र भर
तुझे जब ख्याल मेरा आया तब मैं न था..
जेठ की धूप अंगारों सी बरसी मुझ पर..
जी - भर के पानी पिया पर प्यास न बुझी
तेरे बालों का साया ढूँढता रहा..
साया जब मिला तब मैं न था
तेरे ख़यालों में खोया रहा उम्र भर
तुझे जब ख्याल मेरा आया तब मैं न था..
Wednesday 28 March 2012
मत खेल
हे ! मानव
तेरी दृष्टि में न समा पाए
इतना सौंदर्य है इस धरा पर
नदियों की कल - कल
फूलों की खुशबू
स्वछन्द होकर जहाँ उड़ते है पंछी
असीम गगन में
हवा बेरोक मेरे आँचल में लहराती है
बादल एक देश से बनकर
दूसरे देश में बरसते है
हे ! मानव फिर क्यूँ
अकेले तुने ही सीमाओं में मुझे बाँध डाला है ?
बंदूकों के साये में
जी रहे है इस पार - उस पार
पर ! क्या बारूद से बंजर हुई जमी पर
कोई बीज अंकुरित हो सकता है ?
नहीं - नहीं - नहीं
इस सच को जानकार भी तू अनजान है
मत खेल उन खिलौनों से जो
तेरे वजूद को ही मिटा दे,
मुझे मेरे होने के एहसास से जुदा कर दे
कर कुछ ऐसा जो तेरे होने पर मुझे गर्व हो
चाहत है बस यही कि धरा पर
शांति ही शांति हो
शांति ही शांति हो
(पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के भारत आने पर लिखी गई कविता )
अधूरे सपनो की उड़ान
अधूरे सपनो की उड़ान
अपने सपनो को पंख देना चाहता हूँ
उन्हें उनका अंजाम देना चाहता हूँ
दुनिया के हर रंग को खुद के सपनो में भर
इस जीवन को नया आयाम देना चाहता हूँ
लेकिन सीमाएं कुछ ऐसी है,
उत्तर कुछ ऐसे है कि
जो में जान कर भी स्वयं को बहला लेता हूँ
उन अभावों का खुद से ही उत्तर चाहता हूँ l
इस असीम नभ को अपने दामन में समेटकर
उन अनगिनत तारों को करीब से छुना चाहता हूँ
पर अपनी सीमाओं को जान
बस मन में ही इस बात को
उन अनगिनत इच्छाओं कि तरह
जो कभी पूरी नहीं हुई
कुचल देना चाहता हूँ l
सूरज कि तरह ,
उसके तेज कि तरह,
उस अद्वितीय प्रकाश कि तरह
जिस से ऊर्जा पाकर जीवन पाते है असंख्य सजीव,
मैं भी इस धरा को रोशन करना चाहता हूँ,
लेकिन न साधन न सहयोग है किसी का मेरे पास,
इसलिए अपनी कामनाओ की किरणों को
मुट्ठी में बंद कर देता हूँ l
शहद कि मिठास कि तरह,
पानी की शीतलता की तरह,
हवा की ताजगी की तरह
मैं भी हर एक की जिन्दगी में अपना
एहसास भर देना चाहता हूँ,
बस रुक जाता हूँ यह देख,
कि अभावों से भरा है दामन मेरा
अपनी राह के पत्थर को नहीं हटा पाता हूँ
लेकिन फिर भी
अपने सपनो को पंख देना चाहता हूँ,
उन्हें उनका अंजाम देना चाहता हूँ l
स्वप्न में देखा
स्वप्न में देखा
स्वप्न में देखा
कल रात मुझे एक सपना आया
न जाने कैसे यह मुझे आया
मैंने देखा कि एक
अजीब सी चीज़
मेरे आस -पास घूम रही थी
उसमें सूरज सा तेज था
तो थी चाँद से शांति
हाव - भाव देख के लग रहा था
ऐसा जैसे उसमें समायी हो क्रांति
में थोडा डरा ,
थोडा सहमा
फिर दिखा के हिम्मत गया उसके पास
जाते ही पास उसके
हुआ मुझे एक अजब सा एहसास
मेरे मन में डर का तिमिर ओझल हो गया
आत्मविश्वास का इक दीपक सा जल उठा
हो के खुश मै उससे पूछ ही बैठा
क्या नाम है तुम्हारा?
तुम इतने प्रेरक कैसे हो?
ये तुम्हारे चेहरे पे ओज कैसा है?
मेरी बात सुन के वो फूल सा मुस्काया
फिर बोला मेरा नाम है अक्षर
में मानवता के निर्माण के लिए हू आया
तुम मुझसे भागते हो क्यों?
में तुम्हारी जीवन रेखा बदलने हू आया
मुझ में है इतनी शक्ति
में हर भटके को दिखा देता हू राह
जैसे सूरज की किरण से बीज बनता है पौधा
मेरे आने से मानवता का एक नया रूप होता है पैदा
कालिदास हो या फिर अब्राहम लिंकन
या हो अब्दुल कलाम
हर एक ने मुझसे दोस्ती कर के
किया है अपना नाम
तुम भी मुझसे दोस्ती कर लो
अपने जीवन को मेरे हवाले कर दो
फिर देखना मेरे ओज का चमत्कार
तुम्हारे इस जीवन से
दूर होगा अन्धकार
उसकी बात से मुझे हुई हैरानी
मिली इक प्रेरणा
अब मैंने यह ठानी
पदुंगा में भी करूँगा शब्द से दोस्ती
फिर सफलता भी करेगी मुझसे दोस्ती
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